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Budget 2013-14: बजट नहीं चुनावी नारा है !!

वित्त व बजट
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p chidambaram 1वित्त मंत्री पी. चिंदबरम ने आगामी वित्तीय वर्ष 2013-14 के लिए लोकसभा में आम बजट (Budget 2013-14 in Hindi) पेश कर दिया. इस बजट से लोगों ने जो उम्मीदें लगा रखी थीं उसमें शायद वित्त मंत्री कामयाब नहीं हुए. उन्होंने अपने इस बजट को लोकलुभावन बनाने की पूरी कोशिश की. विद्यार्थियों से लेकर महिलाओं पर ज्यादा ध्यान दिया लेकिन टैक्स में कोई बदलाव न करके उन्होंने मध्यम वर्ग कोई राहत नहीं दी है.


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जहां एक तरफ प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह ने केन्द्रीय बजट पर अपनी राय देते हुए कहा कि वित्तमंत्री पी. चिदंबरम ने शानदार बजट बनाया है, इसके लिए उन्होंने वित्तमंत्री की सराहना भी की. तो वहीं दूसरी तरफ राजनीति से जुड़े लोगों ने इस बजट की आलोचना की और इसे जन विरोधी बताया. भाजपा ने तो इसे ‘लॉलीपॉप’ बजट करार दिया.


भाजपा नेता शत्रुघ्न सिन्हा ने बजट की आलोचना करते हुए कहा कि यह एक लॉलीपॉप बजट है. यह सुलझा हुआ नहीं बल्कि उलझा हुआ बजट है. सिन्हा ने कहा कि वित्त मंत्री ने जोड़-तोड़ कर बजट पेश किया है. जो बजट पेश किया है उससे आम जनता को कोई राहत मिलती नहीं दिख रही है. लोकसभा में विपक्ष की नेता सुषमा स्वराज का कहना है कि ये बजट काफी उबाऊ है. उन्होंने बजट की आलोचना करते हुए कहा, ‘महिलाओं व युवाओं को रोजगार देने को लेकर कोई बात नहीं की गई है. गरीबी दूर करने को लेकर भी कोई प्रस्ताव नहीं रखा गया है. वहीं किसानों को भी बजट से दूर रखा गया है.


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भाजपा के अलावा सरकार को बाहर से समर्थन दे रही समाजवादी पार्टी व बहुजन समाज पार्टी ने भी इस बजट की आलोचना की. समाजवादी पार्टी के प्रमुख मुलायम सिंह यादव ने कहा, ये बजट किसान विरोधी और गरीब विरोधी है जबकि पूर्व मुख्यमंत्री मायावती ने बजट को हवा-हवाई करार दिया. जब पैसे नहीं हैं तो बड़े-बड़े वायदे क्यों किए गए.


ऐसा नहीं है कि चिदंबरम ने इस बजट में जनता को कुछ देने की कोशिश नहीं की. उन्होंने उस वर्ग को ज्यादा फायदा पहुंचाया है जिससे उन्हें या उनकी सरकार को लगता है कि इसका फायदा लोकसभा चुनाव में देखने को मिलेगा. उन्होंने अमीरों, एसयूवी खरीदने वालों और एसी रेस्तरां पर कर बढ़ाने के रास्ते गरीबों की सहानुभूति ली है. विशेषज्ञों की मानें तो चिदंबरम ने अपने बजट के जरिए उस वर्ग को टारगेट करने की कोशिश की है जिनसे उन्हें लगता है कि चुनाव में फायदे होंगे.


चिदंबरम ने बड़ी ही चतुराई से कुछ टैक्स बढाकर वित्तीय घाटे को कम करने की भी कोशिश कर ली और कुछ लुभावने वादे करके आम लोगों को निराश भी नहीं किया. अंत में यह कहा जा सकता है कि यह पूरा बजट एक चुनावी नारे की तरह है जिसको देश के वित्त मंत्री बजट बताकर लोगों में भ्रम पैदा करने की कोशिश कर रहे हैं.


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