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बजट का राजनीतिक इस्तेमाल ही अधिक होता है !!

वित्त व बजट
वित्त व बजट
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indian railways 1अपनी दुर्दशा का दंश झेल रही भारतीय रेलवे के लिए 2013-14 का बजट रेल मंत्री पवन कुमार बंसल ने संसद में पेश कर दिया है. इस बजट पर जहां कांग्रेस बंसल की तारीफों के पुल बांध रही है वहीं विपक्षी पार्टियां इस बजट को जन विरोधी करार दे रही हैं. इसमें यूपीए को समर्थन देने वाले दल भी शामिल हैं.


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हर विपत्ति पर यूपीए सरकार को समर्थन देने वाली समाजवादी पार्टी के मुखिया मुलायम सिंह यादव ने रेल बजट को जनविरोधी करार दिया और कहा कि बजट सिर्फ और सिर्फ कांग्रेस पार्टी के लिए है जबकि बहुजन समाज पार्टी की नेता मायावती ने यूपीए सरकार के बजट को मध्यम वर्ग के लिए बोझ बताया. मुख्य विपक्षी पार्टी भाजपा ने तो रेल बजट को रायबरेली बजट करार देते हुए इसकी कड़ी आलोचना की. भाजपा का कहना था कि बजट में एनडीए के शासन वाले राज्यों को पूरी तरह से नजरअंदाज किया गया है और इसमें सिर्फ और सिर्फ रायबरेली को ध्यान में रखा गया है.


बंसल के बजट को लेकर जिस तरह का राजनीतिक हो-हल्ला किया जा रहा है उस पर जानकार मानते हैं कि बंसल ने जो बजट प्रस्तुत किया उससे किसी को हैरान होने की जरूरत नहीं है. उन्होंने वहीं काम किया है जो उनसे पूर्व के रेल मंत्रियों ने अपने कार्यकाल के दौरान किया था. आखिरकार कांग्रेस को 18 साल बाद अपने राज्यों में कुछ करने का मौका मिला है. आज अगर बंसल पर रेल बजट को लेकर राजनीतिक इस्तेमाल के आरोप लग रहे हैं तो इसके पीछे देश की वह बड़ी आबादी है जो सीधे तौर पर भारतीय रेलवे से जुड़ी है.


ममता को प्रदेश नहीं वोट की चिंता


बंसल से पहले तृणमूल कांग्रेस की ममता बनर्जी, आरजेडी के लालू प्रसाद यादव, एलजेपी के रामविलास पासवान तथा केंद्र में अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार के समय जनता दल (यू) के नेता नीतीश कुमार ने रेल मंत्रालय संभाला था. उन पर भी रेल बजट में अपने गृह राज्य को तरजीह देने का आरोप लगा था. ममता ने तो रेल मंत्रालय को पश्चिम बंगाल से वामपंथी सरकार को जड़ से उखाड़ फेंकने के लिए चुनावी हथियार के रूप में इस्तेमाल किया. ममता 2009 में रेल मंत्रालय में आई थीं और उन्होंने जो तीन रेल बजट संसद में पेश किए उनमें से सभी में उन्होंने अपने गृह राज्य पश्चिम बंगाल पर खास मेहरबानी दिखाई.


जानकार मानते हैं कि आज यदि रेलवे की स्थिति जर्जर है तो उसके पीछे इसका राजनीतिक इस्तेमाल काफी हद तक जिम्मेदार है. राजनीतिक रोटी सेंकने के लिए अगर इसी तरह से रेलवे का इस्तेमाल किया गया तो आने वाले वक्त में रेलवे का परिचालन और इसकी माली हालत दोनों की दशा और दिशा बिगड़ जाएगी.


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